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क्या जानवर होली खेलते हैं?

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हर बार होली के माहौल में यह सवाल मेरे मन में तब आता है जब मैं रंगों से सराबोर बेसहारा जानवरों को देखती हूं। फिर चाहे वह श्वान (डॉग) हो या गाय, सांड, गधा, यहां तक कि बंदर भी। लेकिन वे कैसे खेलते हैं, इसके बारे में किसी ने कभी सोचा नहीं है।

जवाब बहुत आसान है, वे होली नहीं खेलते, लेकिन हम मस्ती और नासमझी में उन पर कभी-कभी सूखे रंग, अबीर या गुलाल फेंक देते हैं। यहां तक कि हम कभी-कभी सिर्फ मनोरंजन के लिए उन पर पानी के गुब्बारे फेंकते हैं।

इस कोरोना काल में जब हम सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) बनाए हुए हैं, तो जानवरों के साथ क्यों नहीं? सबसे निवेदन है, कृपया उन्हें भी सुकून से रहने दें। उन्हें परेशान न करें। तब भी नहीं जब आप बालकनी में हों या राह चलते उनके करीब से गुजरें।

यहां मेरी चिंता उस दुष्परिणाम को लेकर है जिसे ये जानवर भुगतते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि ये जीव पहले से ही परेशान, बेसहारा हैं। हालात की वजह से कई बार तो रोटी के सिर्फ एक टुकड़े के लिए आपस में लड़ रहे होते हैं। उनकी त्वचा पर पहले से ही बहुत सारे घाव होते हैं। कई तो ऐसी बीमारियों से पीड़ित होते हैं जिनके बारे में तभी पता चलता है, जब हम उनके करीब जाते हैं।

हम अपनी मौज-मस्ती के लिए उन पर रंग डाल देते हैं। हमें समझना चाहिए कि वे भी प्रकृति की रचना हैं जो हमारे साथ हैं, लेकिन बोल नहीं सकते। क्या कभी कोई बेसहारा जानवर आपके पास यह कहने के लिए आया कि मुझे त्वचा की एलर्जी हो गई है क्योंकि किसी ने मेरे साथ होली खेली थी

 

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यह बात हम सबके लिए गौर करने लायक है, इसलिए मैं हर किसी को होली की शुभकामनाएं देते रहने के बजाय यह कहना चाहती हूं कि इन्सानों के साथ होली खेलें और इन्सानों के साथ ही रंगों का यह त्योहार मनाएं। लेकिन जानवरों पर कोई अत्याचार नहीं करें।

कृपया होली के नाम पर किसी श्वान (डॉग) या गाय पर रंग न उड़ेलें। वे आपको कभी अपनी पीड़ा नहीं बता पाएंगे।

... तो होली की अनेक शुभकामनाएं; सुरक्षित ढंग से होली खेले, आपस में खेलें; जानवरों के साथ नहीं, चाहे वह आपका पालतू ही क्यों न हो।

एक बार फिर इसी प्रार्थना के साथ

मेजर प्रमिला सिंह (से.नि.)
जीवसेवा के लिए प्रयासरत एक साधारण-सी कार्यकर्ता
ज्योतिषी एवं भविष्यवेत्ता

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हर बार होली के माहौल में यह सवाल मेरे मन में तब आता है जब मैं रंगों से सराबोर बेसहारा जानवरों को देखती हूं। फिर चाहे वह श्वान (डॉग) हो या गाय, सांड, गधा, यहां तक कि बंदर भी। लेकिन वे कैसे खेलते हैं, इसके बारे में किसी ने कभी सोचा नहीं है।

जवाब बहुत आसान है, वे होली नहीं खेलते, लेकिन हम मस्ती और नासमझी में उन पर कभी-कभी सूखे रंग, अबीर या गुलाल फेंक देते हैं। यहां तक कि हम कभी-कभी सिर्फ मनोरंजन के लिए उन पर पानी के गुब्बारे फेंकते हैं।

इस कोरोना काल में जब हम सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) बनाए हुए हैं, तो जानवरों के साथ क्यों नहीं? सबसे निवेदन है, कृपया उन्हें भी सुकून से रहने दें। उन्हें परेशान न करें। तब भी नहीं जब आप बालकनी में हों या राह चलते उनके करीब से गुजरें।

यहां मेरी चिंता उस दुष्परिणाम को लेकर है जिसे ये जानवर भुगतते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि ये जीव पहले से ही परेशान, बेसहारा हैं। हालात की वजह से कई बार तो रोटी के सिर्फ एक टुकड़े के लिए आपस में लड़ रहे होते हैं। उनकी त्वचा पर पहले से ही बहुत सारे घाव होते हैं। कई तो ऐसी बीमारियों से पीड़ित होते हैं जिनके बारे में तभी पता चलता है, जब हम उनके करीब जाते हैं।

हम अपनी मौज-मस्ती के लिए उन पर रंग डाल देते हैं। हमें समझना चाहिए कि वे भी प्रकृति की रचना हैं जो हमारे साथ हैं, लेकिन बोल नहीं सकते। क्या कभी कोई बेसहारा जानवर आपके पास यह कहने के लिए आया कि मुझे त्वचा की एलर्जी हो गई है क्योंकि किसी ने मेरे साथ होली खेली थी

 

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कृपया होली के नाम पर किसी श्वान (डॉग) या गाय पर रंग न उड़ेलें। वे आपको कभी अपनी पीड़ा नहीं बता पाएंगे।

... तो होली की अनेक शुभकामनाएं; सुरक्षित ढंग से होली खेले, आपस में खेलें; जानवरों के साथ नहीं, चाहे वह आपका पालतू ही क्यों न हो।

एक बार फिर इसी प्रार्थना के साथ

मेजर प्रमिला सिंह (से.नि.)
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